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बहिनश्रीके वचनामृत
होगा और सुखकी घड़ी आयगी । ज्ञायककी प्रतीति
हो और विभावकी रुचि छूटे — ऐसे प्रयत्नके पीछे
विकल्प टूटेगा और सुखकी घड़ी आयगी । ‘मैं
ज्ञायक हूँ’ ऐसा भले ही पहले ऊपरी-भावसे कर, फि र
गहराईसे कर, परन्तु चाहे जैसे करके उस मार्ग पर
जा । शुभाशुभ भावसे भिन्न ज्ञायकका ज्ञायकरूपसे
अभ्यास करके ज्ञायककी प्रतीति द्रढ़ करना, ज्ञायकको
गहराईसे प्राप्त करना, वही सादि-अनंत सुख प्राप्त
करनेका उपाय है । आत्मा सुखका धाम है, उसमेंसे
सुख प्राप्त होगा ।।४१९।।
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प्रश्न : — जिज्ञासुको चौवीसों घंटे आत्माके विचार
चलते हैं ?
उत्तर : — विचार चौवीसों घंटे नहीं चलते । परन्तु
आत्माका खटका, लगन, रुचि, उत्साह बना रहता
है । ‘मुझे आत्माका करना है, मुझे आत्माको
पहिचानना है’ इस प्रकार लक्ष बारम्बार आत्माकी ओर
मुड़ता रहता है ।।४२०।।
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