Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 421-422.

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बहिनश्रीके वचनामृत
१९३
प्रश्न :मुमुक्षुको शास्त्रका अभ्यास विशेष रखना
या चिंतनमें विशेष समय लगाना ?
उत्तर :सामान्य अपेक्षासे तो, शास्त्राभ्यास
चिंतन सहित होता है, चिंतन शास्त्राभ्यासपूर्वक होता
है । विशेष अपेक्षासे, अपनी परिणति जिसमें टिकती
हो और अपनेको जिससे विशेष लाभ होता दिखायी
दे वह करना चाहिये । यदि शास्त्राभ्यास करनेसे
अपनेको निर्णय द्रढ़ होता हो, विशेष लाभ होता हो,
तो ऐसा प्रयोजनभूत शास्त्राभ्यास विशेष करना
चाहिये और यदि चिंतनसे निर्णयमें द्रढ़ता होती हो,
विशेष लाभ होता हो, तो ऐसा प्रयोजनभूत चिंतन
विशेष करना चाहिये । अपनी परिणतिको लाभ हो
वह करना चाहिये । अपनी चैतन्यपरिणति आत्माको
पहिचाने यही ध्येय होना चाहिये । उस ध्येयकी
सिद्धिके हेतु प्रत्येक मुमुक्षुको ऐसा ही करना चाहिये
ऐसा नियम नहीं हो सकता ।।४२१।।
प्रश्न :विकल्प हमारा पीछा नहीं छोड़ते !
उत्तर :विकल्प तुझे लगे नहीं हैं, तू