१९४
बहिनश्रीके वचनामृत
विकल्पोंको लगा है । तू हट जा न ! विकल्पोंमें
रंचमात्र सुख और शान्ति नहीं हैं, अंतरमें पूर्ण सुख
एवं समाधान है ।
पहले आत्मस्वरूपकी प्रतीति होती है, भेदज्ञान
होता है, पश्चात् विकल्प टूटते हैं और निर्विकल्प
स्वानुभूति होती है ।।४२२।।
✽
प्रश्न : — सर्वगुणांश सो सम्यक्त्व कहा है, तो
क्या निर्विकल्प सम्यग्दर्शन होने पर आत्माके सर्व
गुणोंका आंशिक शुद्ध परिणमन वेदनमें आता है ?
उत्तर : — निर्विकल्प स्वानुभूतिकी दशामें आनन्द-
गुणकी आश्चर्यकारी पर्याय प्रगट होने पर आत्माके
सर्व गुणोंका (यथासम्भव) आंशिक शुद्ध परिणमन
प्रगट होता है और सर्व गुणोंकी पर्यायोंका वेदन
होता है ।
आत्मा अखण्ड है, सर्व गुण आत्माके ही हैं,
इसलिये एक गुणकी पर्यायका वेदन हो उसके साथ-
साथ सर्व गुणोंकी पर्यायें अवश्य वेदनमें आती हैं ।