नहीं छोड़ा है, परन्तु भ्रान्तिके कारण ‘छोड़ दिया है’ — ऐसा उसे भासित हुआ है । अनादिकालसे द्रव्य तो शुद्धतासे भरा है, ज्ञायकस्वरूप ही है, आनन्दस्वरूप ही है । उसमें अनंत चमत्कारिक शक्ति भरी है । — ऐसे ज्ञायक आत्माको सबसे भिन्न — परद्रव्यसे भिन्न, परभावोंसे भिन्न — जाननेका प्रयत्न करना चाहिये । भेदज्ञानका अभ्यास करना चाहिये । ज्ञायक आत्माको पहिचानना चाहिये ।
‘ज्ञायकस्वरूप हूँ’ ऐसा अभ्यास करना चाहिये, उसकी प्रतीति करना चाहिये; प्रतीति करके उसमें स्थिर हो जाने पर, उसमें जो अनंत चमत्कारिक शक्ति है वह प्रगट अनुभवमें आती है ।।४२६।।
चैतन्यद्रव्यके सामान्यस्वभावको पहिचानकर, उस पर द्रष्टि करके, उसका अभ्यास करते-करते चैतन्य उसमें स्थिर हो जाये, तो उसमें जो विभूति है वह प्रगट होती है । चैतन्यके असली स्वभावकी लगन