१९८
बहिनश्रीके वचनामृत
लगे, तो प्रतीति हो; उसमें स्थिर हो तो उसका अनुभव होता है ।
सबसे पहले चैतन्यद्रव्यको पहिचानना, चैतन्यमें ही विश्वास करना और पश्चात् चैतन्यमें ही स्थिर होना...तो चैतन्य प्रगट हो, उसकी शक्ति प्रगट हो ।
प्रगट करनेमें अपनी तैयारी होना चाहिये; अर्थात् उग्र पुरुषार्थ बारम्बार करे, ज्ञायकका ही अभ्यास, ज्ञायकका ही मंथन, उसीका चिंतवन करे, तो प्रगट हो ।
पूज्य गुरुदेवने मार्ग बतलाया है; चारों ओरसे स्पष्ट किया है ।।४२७।।
✽
प्रश्न : — आत्माकी विभूतिको उपमा देकर समझाइये ।
उत्तर : — चैतन्यतत्त्वमें विभूति भरी है । कोई उपमा उसे लागू नहीं होती । चैतन्यमें जो विभूति भरी है वह अनुभवमें आती है; उपमा क्या दी जाय ? ४२८।।
✽