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बहिनश्रीके वचनामृत
लगे, तो प्रतीति हो; उसमें स्थिर हो तो उसका
अनुभव होता है ।
सबसे पहले चैतन्यद्रव्यको पहिचानना, चैतन्यमें ही
विश्वास करना और पश्चात् चैतन्यमें ही स्थिर
होना...तो चैतन्य प्रगट हो, उसकी शक्ति प्रगट हो ।
प्रगट करनेमें अपनी तैयारी होना चाहिये;
अर्थात् उग्र पुरुषार्थ बारम्बार करे, ज्ञायकका ही
अभ्यास, ज्ञायकका ही मंथन, उसीका चिंतवन करे,
तो प्रगट हो ।
पूज्य गुरुदेवने मार्ग बतलाया है; चारों ओरसे
स्पष्ट किया है ।।४२७।।
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प्रश्न : — आत्माकी विभूतिको उपमा देकर
समझाइये ।
उत्तर : — चैतन्यतत्त्वमें विभूति भरी है । कोई
उपमा उसे लागू नहीं होती । चैतन्यमें जो विभूति
भरी है वह अनुभवमें आती है; उपमा क्या दी
जाय ? ४२८।।
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