जिनेन्द्रदेवके चैतन्यकी महिमाका तो क्या
कहना ! ।।१५।।
✽
ज्ञान-वैराग्यरूपी पानी अंतरमें सींचनेसे अमृत
मिलेगा, तेरे सुखका फव्वारा छूटेगा; राग सींचनेसे
दुःख मिलेगा । इसलिये ज्ञान-वैराग्यरूपी जलका
सिंचन करके मुक्ति सुखरूपी अमृत प्राप्त कर ।।१६।।
✽
जैसे वृक्षका मूल पकड़नेसे सब हाथ आता है,
वैसे ज्ञायकभाव पकड़नेसे सब हाथ आयगा । शुभ-
परिणाम करनेसे कुछ हाथ नहीं आयगा । यदि मूल
स्वभावको पकड़ा होगा तो चाहे जो प्रसंग आयें उस
समय शान्ति — समाधान रहेगा, ज्ञाता-द्रष्टारूपसे रहा
जा सकेगा ।।१७।।
✽
द्रष्टि द्रव्य पर रखना है । विकल्प आयें परन्तु
द्रष्टि एक द्रव्य पर है । जिस प्रकार पतंग आकाशमें
उड़ती है परन्तु डोर हाथमें होती है, उसी प्रकार
‘चैतन्य हूँ’ यह डोर हाथमें रखना । विकल्प आयें,
बहिनश्रीके वचनामृत
७