Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 19-21.

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परन्तु चैतन्यतत्त्व सो मैं हूँऐसा बारम्बार अभ्यास
करनेसे द्रढ़ता होती है ।।१८।।
ज्ञानीके अभिप्रायमें राग है वह जहर है, काला
साँप है । अभी आसक्ति के कारण ज्ञानी थोड़े बाहर
खड़े हैं, राग है, परन्तु अभिप्रायमें काला साँप लगता
है । ज्ञानी विभावके बीच खड़े होने पर भी विभावसे
पृथक् हैंन्यारे हैं ।।१९।।
मुझे कुछ नहीं चाहिये, किसी परपदार्थकी लालसा
नहीं है, आत्मा ही चाहियेऐसी तीव्र उत्सुकता जिसे
हो उसे मार्ग मिलता है । अंतरमें चैतन्यऋद्धि है
तत्संबंधी विकल्पमें भी वह नहीं रुकता । ऐसा निस्पृह
हो जाता है कि मुझे अपना अस्तित्व ही चाहिये ।
ऐसी अंतरमें जानेकी तीव्र उत्सुकता जागे तो
आत्मा प्रगट हो, प्राप्त हो ।।२०।।
चैतन्यको चैतन्यमेंसे परिणमित भावना अर्थात्
बहिनश्रीके वचनामृत