ऐसे कालमें परम पूज्य गुरुदेवश्रीने आत्मा प्राप्त
किया इसलिये परम पूज्य गुरुदेव एक ‘अचंभा’ हैं ।
इस काल दुष्करमें दुष्कर प्राप्त किया; स्वयं अंतरसे
मार्ग प्राप्त किया और दूसरोंको मार्ग बतलाया ।
उनकी महिमा आज तो गायी जा रही है परन्तु हजारों
वर्ष तक भी गायी जायगी ।।२७।।
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भविष्यका चित्रण कैसा करना है वह तेरे हाथकी
बात है । इसलिये कहा है कि — ‘बंध समय जीव
चेतो रे, उदय समय क्या चिंत !’ ।।२८।।
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ज्ञानको धीर-गंभीर करके सूक्ष्मतासे भीतर देख
तो आत्मा पकड़में आ सकता है । एक बार
विकल्पका जाल तोड़कर भीतरसे अलग हो जा, फि र
जाल चिपकेगा नहीं ।।२९।।
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जब बीज बोते हैं तब प्रगट रूपसे कुछ नहीं
दिखता, तथापि विश्वास है कि ‘इस बीजमेंसे वृक्ष
उगेगा, उसमेंसे डालें-पत्ते-फलादि आयेंगे’, पश्चात्
बहिनश्रीके वचनामृत
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