Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 31-32.

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बहिनश्रीके वचनामृत

उसका विचार नहीं आता; उसी प्रकार मूल शक्ति रूप द्रव्यको यथार्थ विश्वासपूर्वक ग्रहण करनेसे निर्मल पर्याय प्रगट होती है; द्रव्यमें प्रगटरूपसे कुछ दिखाई नहीं देता इसलिये विश्वास बिना ‘क्या प्रगट होगा’ ऐसा लगता है, परन्तु द्रव्यस्वभावका विश्वास करनेसे निर्मलता प्रगट होने लगती है ।।३०।।

सम्यग्द्रष्टिको ज्ञान-वैराग्यकी ऐसी शक्ति प्रगट हुई है कि गृहस्थाश्रममें होने पर भी, सभी कार्योंमें स्थित होने पर भी, लेप नहीं लगता, निर्लेप रहते हैं; ज्ञानधारा एवं उदयधारा दोनों भिन्न परिणमती हैं; अल्प अस्थिरता है वह अपने पुरुषार्थकी कमज़ोरीसे होती है, उसके भी ज्ञाता रहते हैं ।।३१।।

सम्यग्द्रष्टिको आत्माके सिवा बाहर कहीं अच्छा नहीं लगता, जगतकी कोई वस्तु सुन्दर नहीं लगती । जिसे चैतन्यकी महिमा एवं रस लगा है उसको बाह्य विषयोंका रस टूट गया है, कोई पदार्थ सुन्दर या अच्छा नहीं लगता । अनादि