Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 46-48.

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जीवन आत्मामय ही कर लेना चाहिये । भले ही
उपयोग सूक्ष्म होकर कार्य नहीं कर सकता हो परन्तु
प्रतीतिमें ऐसा ही होता है कि यह कार्य करनेसे ही
लाभ है, मुझे यही करना है; वह वर्तमान पात्र
है ।।४६।।
त्रैकालिक ध्रुव द्रव्य कभी बँधा नहीं है । मुक्त
है या बँधा है वह व्यवहारनयसे है, वह पर्याय है ।
जैसे मकड़ी अपनी लारमें बँधी है वह छूटना चाहे
तो छूट सकती है, जैसे घरमें रहनेवाला मनुष्य अनेक
कार्योंमें, उपाधियोंमें, जंजालमें फँसा है परन्तु
मनुष्यरूपसे छूटा है; वैसे ही जीव विभावके जालमें
बँधा है, फँसा है परन्तु प्रयत्न करे तो स्वयं मुक्त ही
है ऐसा ज्ञात होता है । चैतन्यपदार्थ तो मुक्त ही है ।
चैतन्य तो ज्ञान-आनन्दकी मूर्तिज्ञायकमूर्ति है,
परन्तु स्वयं अपनेको भूल गया है । विभावका जाल
बिछा है उसमें फँस गया है, परन्तु प्रयत्न करे तो
मुक्त ही है । द्रव्य बँधा नहीं है ।।४७।।
विकल्पमें पूरा-पूरा दुःख लगना चाहिये ।
बहिनश्रीके वचनामृत
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