Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 49-51.

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२०

बहिनश्रीके वचनामृत

विकल्पमें किंचित् भी शान्ति एवं सुख नहीं है ऐसा जीवको अंदरसे लगना चाहिये । एक विकल्पमें दुःख लगता है और दूसरे मंद विकल्पमें शांतिका आभास होता है, परन्तु विकल्पमात्रमें तीव्र दुःख लगे तो अंदर मार्ग मिले बिना न रहे ।।४८।।

सारे दिनमें आत्मार्थको पोषण मिले ऐसे परिणाम कितने हैं और अन्य परिणाम कितने हैं वह जाँचकर पुरुषार्थकी ओर झुकना । चिंतवन मुख्यरूपसे करना चाहिये । कषायके वेगमें बहनेसे अटकना, गुणग्राही बनना ।।४९।।

तू सत्की गहरी जिज्ञासा कर जिससे तेरा प्रयत्न बराबर चलेगा; तेरी मति सरल एवं सुलटी होकर आत्मामें परिणमित हो जायगी । सत्के संस्कार गहरे डाले होंगे तो अन्तमें अन्य गतिमें भी सत् प्रगट होगा । इसलिये सत्के गहरे संस्कार डाल ।।५०।।

आकाश - पाताल भले एक हो जायें परन्तु भाई !