Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 49-51.

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विकल्पमें किंचित् भी शान्ति एवं सुख नहीं है ऐसा
जीवको अंदरसे लगना चाहिये । एक विकल्पमें दुःख
लगता है और दूसरे मंद विकल्पमें शांतिका आभास
होता है, परन्तु विकल्पमात्रमें तीव्र दुःख लगे तो अंदर
मार्ग मिले बिना न रहे ।।४८।।
सारे दिनमें आत्मार्थको पोषण मिले ऐसे परिणाम
कितने हैं और अन्य परिणाम कितने हैं वह जाँचकर
पुरुषार्थकी ओर झुकना । चिंतवन मुख्यरूपसे करना
चाहिये । कषायके वेगमें बहनेसे अटकना, गुणग्राही
बनना ।।४९।।
तू सत्की गहरी जिज्ञासा कर जिससे तेरा प्रयत्न
बराबर चलेगा; तेरी मति सरल एवं सुलटी होकर
आत्मामें परिणमित हो जायगी । सत्के संस्कार गहरे
डाले होंगे तो अन्तमें अन्य गतिमें भी सत् प्रगट
होगा । इसलिये सत्के गहरे संस्कार डाल ।।५०।।
आकाश - पाताल भले एक हो जायें परन्तु भाई !
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बहिनश्रीके वचनामृत