Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 52-54.

< Previous Page   Next Page >


Page 21 of 212
PDF/HTML Page 36 of 227

 

बहिनश्रीके वचनामृत

२१

तू अपने ध्येयको मत चूकना, अपने प्रयत्नको मत छोड़ना । आत्मार्थको पोषण मिले वह कार्य करना । जिस ध्येय पर आरूढ़ हुआ उसे पूर्ण करना, अवश्य सिद्धि होगी ।।५१।।

शरीर शरीरका कार्य करता है, आत्मा आत्माका कार्य करता है । दोनों भिन्न-भिन्न स्वतंत्र हैं, उनमें ‘यह शरीरादि मेरे’ ऐसा मानकर सुख-दुःख न कर, ज्ञाता बन जा । देहके लिये अनंत भव व्यतीत हुए; अब, संत कहते हैं कि अपने आत्माके लिये यह जीवन अर्पण कर ।।५२।।

निवृत्तिमय जीवनमें प्रवृत्तिमय जीवन नहीं सुहाता । शरीरका रोग मिटना हो तो मिटे, परन्तु उसके लिये प्रवृत्ति नहीं सुहाती । बाहरका कार्य उपाधि लगता है, रुचता नहीं ।।५३।।

अनुकूलतामें नहीं समझता तो भाई ! अब प्रति-