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कूलतामें तो समझ ! किसी प्रकार समझ....समझ, और वैराग्य लाकर आत्मामें जा ।।५४।।
चैतन्यकी भावना कभी निष्फल नहीं जाती, सफल ही होती है । भले ही थोड़ा समय लगे, किन्तु भावना सफल होती ही है ।।५५।।
जीव स्वयं पूरा खो गया है वह नहीं देखता, और एक वस्तु खो गई तो मानों स्वयं पूरा खो गया, रुक गया; रुपया, घर, शरीर, पुत्रादिमें तू रुक गया है । अरे ! विचार तो कर कि तू सारे दिन कहाँ रुका रहा ! बाहरका बाहर ही रुक गया, तो भाई ! वहाँ आत्मप्राप्ति कैसे होगी ? ।।५६।।
पूज्य गुरुदेवके श्रीमुखसे स्वयं जिस तत्त्वको ग्रहण किया हो उसका मंथन करना चाहिये । निवृत्तिकालमें अपनी परिणतिमें रस आये ऐसी पुस्तकोंका पठन करके अपनी लगनको जागृत रखना चाहिये । आत्माके ध्येयपूर्वक, अपनी परिणतिमें रस