Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 61-62.

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अपना सच्चा स्वरूप प्राप्त करनेसे वंचित रहा, कभी
पुरुषार्थ किये बिना अटका रहा, कभी पुरुषार्थ किया
भी तो थोड़ेसे पुरुषार्थके लिये वहाँसे अटका और
गिरा ।इस प्रकार जीव अपना स्वरूप प्राप्त करनेमें
अनंत बार अटका । पुण्योदयसे यह देह प्राप्त हुआ,
यह दशा प्राप्त हुई, ऐसे सत्पुरुषका योग मिला; अब
यदि पुरुषार्थ नहीं करेगा तो किस भवमें करेगा ? हे
जीव ! पुरुषार्थ कर; ऐसा सुयोग एवं सच्चा आत्म-
स्वरूप बतलानेवाले सत्पुरुष बार-बार नहीं मिलेंगे ।।६०।।
जिसे सचमुच ताप लगा हो, जो संसारसे ऊब
गया हो उसकी यह बात है । विभावसे ऊब जाये
और संसारका त्रास लगे तो मार्ग मिले बिना नहीं
रहता । कारण दे तो कार्य प्रगट होता ही है । जिसे
जिसकी रुचिरस हो वहाँ उसका समय कट जाता
है; ‘रुचि अनुयायी वीर्य’ । निरंतर ज्ञायकके मंथनमें
रहे, दिन-रात उसके पीछे पड़े, तो वस्तु प्राप्त हुए
बिना न रहे ।।६१।।
जीव ज्ञायकके लक्षसे श्रवण करे, चिंतवन करे,
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बहिनश्रीके वचनामृत