अपना सच्चा स्वरूप प्राप्त करनेसे वंचित रहा, कभी
पुरुषार्थ किये बिना अटका रहा, कभी पुरुषार्थ किया
भी तो थोड़ेसे पुरुषार्थके लिये वहाँसे अटका और
गिरा । — इस प्रकार जीव अपना स्वरूप प्राप्त करनेमें
अनंत बार अटका । पुण्योदयसे यह देह प्राप्त हुआ,
यह दशा प्राप्त हुई, ऐसे सत्पुरुषका योग मिला; अब
यदि पुरुषार्थ नहीं करेगा तो किस भवमें करेगा ? हे
जीव ! पुरुषार्थ कर; ऐसा सुयोग एवं सच्चा आत्म-
स्वरूप बतलानेवाले सत्पुरुष बार-बार नहीं मिलेंगे ।।६०।।
✽
जिसे सचमुच ताप लगा हो, जो संसारसे ऊब
गया हो उसकी यह बात है । विभावसे ऊब जाये
और संसारका त्रास लगे तो मार्ग मिले बिना नहीं
रहता । कारण दे तो कार्य प्रगट होता ही है । जिसे
जिसकी रुचि — रस हो वहाँ उसका समय कट जाता
है; ‘रुचि अनुयायी वीर्य’ । निरंतर ज्ञायकके मंथनमें
रहे, दिन-रात उसके पीछे पड़े, तो वस्तु प्राप्त हुए
बिना न रहे ।।६१।।
✽
जीव ज्ञायकके लक्षसे श्रवण करे, चिंतवन करे,
२४
बहिनश्रीके वचनामृत