Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 65-68.

< Previous Page   Next Page >


Page 26 of 212
PDF/HTML Page 41 of 227

 

२६

बहिनश्रीके वचनामृत

आत्माकी साधना की है; वे मंगलरूप हैं, वे लोकमें उत्तम हैं; वे भव्यजीवोंके शरण हैं ।।६४।।

देव-गुरुकी वाणी और देव-शास्त्र-गुरुकी महिमा चैतन्यदेवकी महिमा जागृत करनेमें, उसके गहरे संस्कार द्रढ़ करनेमें तथा स्वरूपप्राप्ति करनेमें निमित्त हैं ।।६५।।

बाह्यमें सब कुछ हो उसमेंभक्ति -उल्लासके कार्य हों उनमें भीआत्माका आनन्द नहीं है । जो तलमेंसे आये वही आनन्द सच्चा है ।।६६।।

प्रत्येक प्रसंगमें शान्ति, शान्ति और शान्ति ही लाभदायक है ।।६७।।

पूज्य गुरुदेवकी वाणी मिले वह एक अनुपम सौभाग्य है । मार्ग बतलानेवाले गुरु मिले और उनकी वाणी सुननेको मिली वह मुमुक्षुओंका परम सौभाग्य