है । प्रतिदिन प्रातः-मध्याह्न दो बार ऐसा उत्तम सम्यक्-
तत्त्व सुननेको मिलता है इस जैसा दूसरा कौनसा
सद्भाग्य होगा ? श्रोताको अपूर्वता लगे और पुरुषार्थ
करे तो वह आत्माके समीप आ जाय और जन्म-मरण
टल जाय — ऐसी अद्भुत वाणी है । ऐसा जो श्रवणका
सौभाग्य प्राप्त हुआ है वह मुमुक्षु जीवोंको सफल कर
लेने योग्य है । पंचम कालमें निरंतर अमृतझरती
गुरुदेवकी वाणी भगवानका विरह भुलाती है ! ।।६८।।
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प्रयोजन तो एक आत्माका ही रखना । आत्माका
रस आये वहाँ विभावका रस झर जाता है ।।६९।।
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सब कुछ आत्मामें है, बाहर कुछ नहीं है । तुझे
कुछ भी जाननेकी इच्छा होती हो तो तू अपने
आत्माकी साधना कर । पूर्णता प्रगट होने पर
लोकालोक उसमें ज्ञेयरूपसे ज्ञात होगा । जगत
जगतमें रहे तथापि केवलज्ञानमें सब ज्ञात होता है ।
जाननहार तत्त्व पूर्णतारूप परिणमने पर उसकी
जानकारीसे बाहर कुछ नहीं रहता और साथ ही साथ
बहिनश्रीके वचनामृत
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