बहिनश्रीके वचनामृत
तो स्वच्छ ही है । निर्मलताके भंडारको पहिचान तो एकके बाद एक निर्मलताकी पर्यायोंका समूह प्रगट होगा । अंतरमें ज्ञान और आनन्दादिकी निर्मलता ही भरी है ।।८२।।
अंतरमें आत्मा मंगलस्वरूप है । आत्माका आश्रय करनेसे मंगलस्वरूप पर्यायें प्रगट होंगी । आत्मा ही मंगल, उत्तम और नमस्कार करने योग्य है — इस प्रकार यथार्थ प्रतीति कर और उसीका ध्यान कर तो मंगलता एवं उत्तमता प्रगट होगी ।।८३।।
‘मैं तो उदासीन ज्ञाता हूँ’ ऐसी निवृत्त दशामें ही शान्ति है । स्वयं अपनेको जाने और परका अकर्ता हो तो मोक्षमार्गकी धारा प्रगटे और साधकदशाका प्रारम्भ हो ।।८४।।
शुद्ध द्रव्य पर द्रष्टि देनेसे सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान प्रगट होते हैं । वे न प्रगटें तब तक और बादमें भी देव-शास्त्र-गुरुकी महिमा, स्वाध्याय आदि ब. व. ३