Benshreeke Vachanamrut (Hindi).

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जायगा । उन्हें लघु वयमें ही पूज्य गुरुदेवश्रीकी शुद्धात्मस्पर्शी
वज्रवाणीके श्रवणका परम सौभाग्य प्राप्त हुआ था । उससे उनके

सम्यक्त्व-आराधनाके पूर्वसंस्कार पुनः साकार हुए । उन्होंने तत्त्वमंथनके

अंतर्मुख उग्र पुरुषार्थसे १८ वर्षकी बालावयमें निज शुद्धात्मदेवके

साक्षात्कारको प्राप्त कर निर्मल स्वानुभूति प्राप्त की । दिनोंदिन वृद्धिगत-

धारारूप वर्तती उस विमल अनुभूतिसे सदा पवित्र प्रवर्तमान उनका

जीवन, पूज्य गुरुदेवकी मांगलिक प्रबल प्रभावना-छायामें, मुमुक्षुओंको

पवित्र जीवनकी प्रेरणा दे रहा है ।
पूज्य बहिनश्रीकी स्वानुभूतिजन्य पवित्रताकी छाप पूज्य गुरुदेवश्रीके
हृदयमें सर्वप्रथम तब उठी कि जब संवत् १९८९ में राजकोटमें उन्हें
ज्ञात हुआ कि बहिनश्रीको सम्यग्दर्शन एवं तज्जन्य निर्विकल्प आत्मानुभूति

प्रगट हुई है; ज्ञात होने पर उन्होंने अध्यात्मविषयक गम्भीर कसोटीप्रश्न

पूछकर बराबर परीक्षा की; और परिणामतः पूज्य गुरुदेवने सहर्ष स्वीकार

करके प्रमोद व्यक्त करते हुए कहा : ‘बहिन ! तुम्हारी
द्रष्टि और निर्मल
अनुभूति यथार्थ है ।’
असंग आत्मदशाकी प्रेमी पूज्य बहिनश्रीको कभी भी लौकिक
व्यवहारके प्रसंगोंमें रस आया ही नहीं है । उनका अंतर्ध्येयलक्षी जीवन
सत्श्रवण, स्वाध्याय, मंथन और आत्मध्यानसे समृद्ध है । आत्मध्यानमयी

विमल अनुभूतिमेंसे उपयोग बाहर आने पर एक बार [(गुजराती) सं.

१९९३की चैत्र कृष्णा अष्टमीके दिन] उनको उपयोगकी निर्मलतामें

भवांतरों सम्बन्धी सहज स्पष्ट जातिस्मरणज्ञान प्रगट हुआ । धर्मसम्बन्धी

अनेक प्रकारोंकी स्पष्टताका
सत्यताका वास्तविक बोध देनेवाला उनका
वह सातिशय स्मरणज्ञान आत्मशुद्धिके साथ-साथ क्रमशः बढ़ता गया,
जिसकी पुनीत प्रभासे पूज्य गुरुदेवके मंगल प्रभावना-उदयको चमत्कारिक

वेग मिला है ।
सहज वैराग्य, शुद्धात्मरसीली भगवती चेतना, विशुद्ध आत्मध्यानके
प्रभावसे पुनःप्राप्त निज-आराधनाकी मंगल डोर तथा ज्ञायकउद्यानमें
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