वज्रवाणीके श्रवणका परम सौभाग्य प्राप्त हुआ था । उससे उनके
सम्यक्त्व-आराधनाके पूर्वसंस्कार पुनः साकार हुए । उन्होंने तत्त्वमंथनके
अंतर्मुख उग्र पुरुषार्थसे १८ वर्षकी बालावयमें निज शुद्धात्मदेवके
साक्षात्कारको प्राप्त कर निर्मल स्वानुभूति प्राप्त की । दिनोंदिन वृद्धिगत-
धारारूप वर्तती उस विमल अनुभूतिसे सदा पवित्र प्रवर्तमान उनका
जीवन, पूज्य गुरुदेवकी मांगलिक प्रबल प्रभावना-छायामें, मुमुक्षुओंको
पवित्र जीवनकी प्रेरणा दे रहा है ।
ज्ञात हुआ कि बहिनश्रीको सम्यग्दर्शन एवं तज्जन्य निर्विकल्प आत्मानुभूति
प्रगट हुई है; ज्ञात होने पर उन्होंने अध्यात्मविषयक गम्भीर कसोटीप्रश्न
पूछकर बराबर परीक्षा की; और परिणामतः पूज्य गुरुदेवने सहर्ष स्वीकार
करके प्रमोद व्यक्त करते हुए कहा : ‘बहिन ! तुम्हारी
सत्श्रवण, स्वाध्याय, मंथन और आत्मध्यानसे समृद्ध है । आत्मध्यानमयी
विमल अनुभूतिमेंसे उपयोग बाहर आने पर एक बार [(गुजराती) सं.
१९९३की चैत्र कृष्णा अष्टमीके दिन] उनको उपयोगकी निर्मलतामें
भवांतरों सम्बन्धी सहज स्पष्ट जातिस्मरणज्ञान प्रगट हुआ । धर्मसम्बन्धी
अनेक प्रकारोंकी स्पष्टताका
जिसकी पुनीत प्रभासे पूज्य गुरुदेवके मंगल प्रभावना-उदयको चमत्कारिक
वेग मिला है ।