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मोक्षपदकी प्राप्ति होती है । शुद्धात्माका ध्यान करे उसे शुद्धता प्राप्त हो ।।११८।।
गुरुकी वाणीसे जिसका हृदय बिंध गया है और जिसे आत्माकी लगन लगी है, उसका चित्त अन्यत्र कहीं नहीं लगता । उसे एक परमात्मा ही चाहिये, दूसरा कुछ नहीं ।।११९।।
पंच परमेष्ठीका ध्यान करता है, परन्तु ठेठ तलमेंसे शान्ति आना चाहिये वह नहीं आती । अनेक फल- फू लोंसे मनोहर वृक्षके समान अनंतगुणनिधि आत्मा अद्भुत है, उसके आश्रयमें रमनेसे सच्ची शान्ति प्रगट होती है ।।१२०।।
आचार्यदेव करुणा करके जीवको जगाते हैं : — जाग रे ! भाई, जाग । तुझे निद्रामें दिशा नहीं सूझती । तू अपनी भूलसे ही भटका है । तू स्वतंत्र द्रव्य है; भूल करनेमें भी स्वतंत्र है । तू परिभ्रमणके