बहिनश्रीके वचनामृत
[ ४५
समय भी शुद्ध पदार्थ रहा है । यह कोई महिमावान वस्तु तुझे बतला रहे हैं । तू अंदर गहराईमें उतरकर देख, असली तत्त्वको पहिचान । तेरा दुःख टलेगा, तू परम सुखी होगा ।।१२१।।
✽
तू आत्मामें जा तो तेरा भटकना मिट जायगा । जिसे आत्मामें जाना हो वह आत्माका आधार लेता है ।।१२२।।
✽
चैतन्यरूपी आकाशकी रम्यता सदाकाल जयवन्त है । जगतके आकाशमें चन्द्रमा और तारामण्डलकी रम्यता होती है, चैतन्य-आकाशमें अनेक गुणोंकी रम्यता है । वह रम्यता कोई और ही प्रकारकी है । स्वसंवेदनप्रत्यक्ष ज्ञान प्रगट करनेसे वह रम्यता ज्ञात होती है । स्वानुभूतिकी रम्यता भी कोई और ही है, अनुपम है ।।१२३।।
✽
शुद्ध आत्माका स्वरूप बतलानेमें गुरुके अनुभव-