समय भी शुद्ध पदार्थ रहा है । यह कोई महिमावान
वस्तु तुझे बतला रहे हैं । तू अंदर गहराईमें उतरकर
देख, असली तत्त्वको पहिचान । तेरा दुःख टलेगा, तू
परम सुखी होगा ।।१२१।।
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तू आत्मामें जा तो तेरा भटकना मिट जायगा ।
जिसे आत्मामें जाना हो वह आत्माका आधार लेता
है ।।१२२।।
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चैतन्यरूपी आकाशकी रम्यता सदाकाल जयवन्त
है । जगतके आकाशमें चन्द्रमा और तारामण्डलकी
रम्यता होती है, चैतन्य-आकाशमें अनेक गुणोंकी
रम्यता है । वह रम्यता कोई और ही प्रकारकी है ।
स्वसंवेदनप्रत्यक्ष ज्ञान प्रगट करनेसे वह रम्यता ज्ञात
होती है । स्वानुभूतिकी रम्यता भी कोई और ही है,
अनुपम है ।।१२३।।
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शुद्ध आत्माका स्वरूप बतलानेमें गुरुके अनुभव-
बहिनश्रीके वचनामृत
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