Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 125-127.

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बहिनश्रीके वचनामृत

पूर्वक निकले हुए वचन रामबाण जैसे हैं, उनसे मोह भाग जाता है और शुद्धात्मतत्त्वका प्रकाश होता है ।।१२४।।

आत्मा न्यारे देशमें निवास करनेवाला है; पुद्गलका या वाणीका देश उसका नहीं है । चैतन्य चैतन्यमें ही निवास करनेवाला है । गुरु उसे ज्ञानलक्षण द्वारा बतलाते हैं । उस लक्षण द्वारा अंतरमें जाकर आत्माको ढूँढ़ ले ।।१२५।।

पर्यायके ऊपरसे द्रष्टि हटाकर द्रव्य पर द्रष्टि लगाये तो मार्ग मिलता ही है । जिसे लगन लगी हो उसे पुरुषार्थ हुए बिना रहता ही नहीं । अंतरसे ऊब जाये, थकान लगे, सचमुचकी थकान लगे, तो पीछे मुड़े बिना न रहे ।।१२६।।

कोई किसीका कुछ कर नहीं सकता । विभाव भी तेरे नहीं हैं तो बाह्य संयोग तो कहाँसे तेरे होंगे ? ।।१२७।।