४६ ]
बहिनश्रीके वचनामृत
पूर्वक निकले हुए वचन रामबाण जैसे हैं, उनसे मोह भाग जाता है और शुद्धात्मतत्त्वका प्रकाश होता है ।।१२४।।
✽
आत्मा न्यारे देशमें निवास करनेवाला है; पुद्गलका या वाणीका देश उसका नहीं है । चैतन्य चैतन्यमें ही निवास करनेवाला है । गुरु उसे ज्ञानलक्षण द्वारा बतलाते हैं । उस लक्षण द्वारा अंतरमें जाकर आत्माको ढूँढ़ ले ।।१२५।।
✽
पर्यायके ऊपरसे द्रष्टि हटाकर द्रव्य पर द्रष्टि लगाये तो मार्ग मिलता ही है । जिसे लगन लगी हो उसे पुरुषार्थ हुए बिना रहता ही नहीं । अंतरसे ऊब जाये, थकान लगे, सचमुचकी थकान लगे, तो पीछे मुड़े बिना न रहे ।।१२६।।
✽
कोई किसीका कुछ कर नहीं सकता । विभाव भी तेरे नहीं हैं तो बाह्य संयोग तो कहाँसे तेरे होंगे ? ।।१२७।।
✽