Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 132-135.

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बहिनश्रीके वचनामृत

प्रतीतिमें फे र पड़ा तो संसार खड़ा है ।।१३१।।

जैसे लेंडीपीपरकी घुटाई करनेसे चरपराहट प्रगट होती है, उसी प्रकार ज्ञायकस्वभावकी घुटाई करनेसे अनंत गुण प्रगट होते हैं ।।१३२।।

ज्ञानी चैतन्यकी शोभा निहारनेके लिये कुतूहल- बुद्धिवालेआतुर होते हैं । अहो ! उन परम पुरुषार्थी महाज्ञानियोंकी दशा कैसी होगी जो अंदर जाने पर बाहर आते ही नहीं ! धन्य वह दिवस जब बाहर आना ही न पड़े ।।१३३।।

मुनिने सर्व विभावों पर विजय पाकर प्रव्रज्यारूप साम्राज्य प्राप्त किया है । विजयपताका फहरा रही है ।।१३४।।

एक-एक दोषको ढूँढ़-ढूँढ़कर टालना नहीं पड़ता । अंतरमें द्रष्टि स्थिर करे तो गुणरत्नाकर प्रगट हो और