‘ज्ञायक’ — उसीकी रुचि हो तो पुरुषार्थका झुकाव
हुए बिना न रहे ।।१३८।।
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गहराईसे लगन लगाकर पुरुषार्थ करे तो वस्तु
प्राप्त हुए बिना न रहे । अनादि कालसे लगन लगी
ही नहीं है । लगन लगे तो ज्ञान और आनन्द अवश्य
प्रगट हो ।।१३९।।
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‘है’, ‘है’, ‘है’ ऐसी ‘अस्ति’ ख्यालमें आती है
न ? ‘ज्ञाता’, ‘ज्ञाता’, ‘ज्ञाता’ है न ? वह मात्र
वर्तमान जितना ‘सत्’ नहीं है । वह तत्त्व अपनेको
त्रिकाल सत् बतला रहा है, परन्तु तू उसकी मात्र
‘वर्तमान अस्ति’ मानता है ! जो तत्त्व वर्तमानमें है
वह त्रैकालिक होता ही है । विचार करनेसे आगे बढ़ा
जाता है । अनंत कालमें सब कुछ किया, एक
त्रैकालिक सत्की श्रद्धा नहीं की ।।१४०।।
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अज्ञानी जीवको अनादि कालसे विभावका अभ्यास
५० ]
बहिनश्रीके वचनामृत