Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 142-144.

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बहिनश्रीके वचनामृत

[ ५१

है; मुनिको स्वभावका अभ्यास वर्तता है । स्वयंने अपनी सहज दशा प्राप्त की है । उपयोग जरा भी बाहर जाय कि तुरन्त सहजरूपसे अपनी ओर ढल जाता है । बाहर आना पड़े वह बोझउपाधि लगती है । मुनियोंको अंतरमें सहज दशासमाधि है ।।१४१।।

हमेशा आत्माको ऊर्ध्व रखना चाहिये । सच्ची जिज्ञासा हो उसके प्रयास हुए बिना नहीं रहता ।।१४२।।

स्वरूपकी शोधमें तन्मय होने पर, जो अनेक प्रकारके विकल्पजालमें फि रता था वह आत्माके सन्मुख होता है । आत्मस्वरूपका अभ्यास करनेसे गुणोंका विकास होता है ।।१४३।।

सत्य समझनेमें देर भले ही लगे परन्तु फल आनन्द और मुक्ति है । आत्मामें एकाग्र हो वहाँ आनन्द झरता है ।।१४४।।