बहिनश्रीके वचनामृत
रागी हूँ या नहीं — उन सब विकल्पोंके उस पार मैं शुद्ध तत्त्व हूँ । नयोंसे अतिक्रान्त चैतन्य विराजमान है । द्रव्यका अवलम्बन कर तो चैतन्य प्रगट होगा ।।१४९।।
शुद्ध तत्त्वकी द्रष्टि प्रगट करके उस नौकामें बैठ गया वह तर गया ।।१५०।।
एकदम पुरुषार्थ करके अपने चैतन्यस्वभावकी गहराईमें उतर जा । कहीं रुकना मत । अंतरसे खटका न जाय तब तक वीतराग दशा प्रगट नहीं होती । बाहुबलीजी जैसोंको भी एक विकल्पमें रुके रहनेसे वीतराग दशा प्रगट नहीं हुई ! आँखमें किरकिरी नहीं समाती, वैसे ही आत्मस्वभावमें एक अणुमात्र भी विभाव नहीं पुसाता । जब तक संज्वलनकषायका अबुद्धिपूर्वकका अतिसूक्ष्म अंश भी विद्यमान हो तब तक पूर्णज्ञान — केवलज्ञान प्रगट नहीं होता ।।१५१।।