५८ ]
दूसरे अनंत आश्चर्यकारी गुण हैं जिनकी किसी अन्य पदार्थके साथ तुलना नहीं हो सकती । निर्मल पर्यायरूप परिणमित होने पर, जिस प्रकार कमल सर्व पंखुरियोंसे खिल उठता है उसी प्रकार आत्मा गुणरूपी अनंत पंखुरियोंसे खिल उठता है ।।१६३।।
चैतन्यद्रव्य पूर्ण निरोग है । पर्यायमें रोग है । शुद्ध चैतन्यकी भावना ऐसी उत्तम औषधि है जिससे पर्यायरोग मिट जाये । शुद्ध चैतन्यभावना वह शुद्ध परिणमन है, शुभाशुभ परिणमन नहीं है । उससे अवश्य संसार-रोग मिटता है । वीतराग देव तथा गुरुके वचनामृतोंका हार्द समझकर शुद्ध चैतन्य- भावनारूप उपादान-औषधका सेवन किया जाय तो भवरोग मिटता है; इसलिये वीतरागके वचनामृतोंको भवरोगके निमित्त-औषध कहे गये हैं ।।१६४।।
जिसे चैतन्यदेवकी महिमा नहीं है उसे अंतरमें निवास करना दुर्लभ है ।।१६५।।