Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 164-165.

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दूसरे अनंत आश्चर्यकारी गुण हैं जिनकी किसी अन्य
पदार्थके साथ तुलना नहीं हो सकती । निर्मल
पर्यायरूप परिणमित होने पर, जिस प्रकार कमल सर्व
पंखुरियोंसे खिल उठता है उसी प्रकार आत्मा गुणरूपी
अनंत पंखुरियोंसे खिल उठता है ।।१६३।।
चैतन्यद्रव्य पूर्ण निरोग है । पर्यायमें रोग है ।
शुद्ध चैतन्यकी भावना ऐसी उत्तम औषधि है जिससे
पर्यायरोग मिट जाये । शुद्ध चैतन्यभावना वह शुद्ध
परिणमन है, शुभाशुभ परिणमन नहीं है । उससे
अवश्य संसार-रोग मिटता है । वीतराग देव तथा
गुरुके वचनामृतोंका हार्द समझकर शुद्ध चैतन्य-
भावनारूप उपादान-औषधका सेवन किया जाय तो
भवरोग मिटता है; इसलिये वीतरागके वचनामृतोंको
भवरोगके निमित्त-औषध कहे गये हैं ।।१६४।।
जिसे चैतन्यदेवकी महिमा नहीं है उसे अंतरमें
निवास करना दुर्लभ है ।।१६५।।
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बहिनश्रीके वचनामृत