हे शुद्धात्मा ! तू मुक्त क्त स्वरूप है । तुझे पहिचाननेसे
पाँच प्रकारके परावर्तनोंसे छुटकारा होता है इसलिये
तू सम्पूर्ण मुक्ति का दाता है । तुझ पर निरंतर द्रष्टि
रखनेसे, तेरी शरणमें आनेसे, जन्म-मरण मिटते
हैं ।।१६६।।
✽
वाणी और विभावोंसे भिन्न तथापि कथंचित् गुरु-
वचनोंसे ज्ञात हो सके ऐसा जो चैतन्यतत्त्व उसकी
अगाधता, अपूर्वता, अचिंत्यता गुरु बतलाते हैं ।
शुभाशुभ भावोंसे दूर चैतन्यतत्त्व अपनेमें निवास
करता है ऐसा भेदज्ञान गुरुवचनों द्वारा करके जो
शुद्धद्रष्टिवान हो उसे यथार्थ द्रष्टि होती है, लीनताके
अंश बढ़ते हैं, मुनिदशामें अधिक लीनता होती है
और केवलज्ञान प्रगट होकर परिपूर्ण मुक्ति पर्याय प्राप्त
होती है ।।१६७।।
✽
सम्यग्दर्शन होते ही जीव चैतन्यमहलका स्वामी
बन गया । तीव्र पुरुषार्थीको महलका अस्थिरतारूप
कचरा निकालनेमें कम समय लगता है, मन्द
बहिनश्रीके वचनामृत
[ ५९