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पुरुषार्थीको अधिक समय लगता है; परन्तु दोनों अल्प-अधिक समयमें सब कचरा निकालकर केवल- ज्ञान अवश्य प्राप्त करेंगे ही ।।१६८।।
विभावोंमें और पाँच परावर्तनोंमें कहीं विश्रान्ति नहीं है । चैतन्यगृह ही सच्चा विश्रान्तिगृह है । मुनिवर उसमें बारम्बार निर्विकल्परूपसे प्रवेश करके विशेष विश्राम पाते हैं । बाहर आये नहीं कि अन्दर चले जाते हैं ।।१६९।।
एक चैतन्यको ही ग्रहण कर । सर्व ही विभावोंसे परिमुक्त , अत्यन्त निर्मल निज परमात्मतत्त्वको ही ग्रहण कर, उसीमें लीन हो, एक परमाणुमात्रकी भी आसक्ति छोड़ दे ।।१७०।।
एक म्यानमें दो तलवारें नहीं समा सकतीं । चैतन्यकी महिमा और संसारकी महिमा दो एकसाथ नहीं रह सकतीं । कुछ जीव मात्र क्षणिक वैराग्य करते हैं कि संसार अशरण है, अनित्य है, उन्हें