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‘मैं हूँ चैतन्य’ । जिसे घर नहीं मिला है ऐसे मनुष्यको बाहर खड़े-खड़े बाहरकी वस्तुएँ, धमाल देखने पर अशान्ति रहती है; परन्तु जिसे घर मिल गया है उसे घरमें रहते हुए बाहरकी वस्तुएँ, धमाल देखने पर शान्ति रहती है; उसी प्रकार जिसे चैतन्यघर मिल गया है, द्रष्टि प्राप्त हो गई है, उसे उपयोग बाहर जाय तब भी शान्ति रहती है ।।१७४।।
साधक जीवको अपने अनेक गुणोंकी पर्यायें निर्मल होती हैं, खिलती हैं । जिस प्रकार नन्दनवनमें अनेक वृक्षोंके विविध प्रकारके पत्र-पुष्प-फलादि खिल उठते हैं, उसी प्रकार साधक आत्माको चैतन्यरूपी नन्दनवनमें अनेक गुणोंकी विविध प्रकारकी पर्यायें खिल उठती हैं ।।१७५।।
मुक्त दशा परमानन्दका मंदिर है । उस मंदिरमें निवास करनेवाले मुक्त आत्माको असंख्य प्रदेशोंमें अनन्त आनन्द परिणमित होता है । इस मोक्षरूप परमानन्दमन्दिरका द्वार साम्यभाव है । ज्ञायकभावरूप