Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 180-181.

< Previous Page   Next Page >


Page 64 of 212
PDF/HTML Page 79 of 227

 

६४ ]

बहिनश्रीके वचनामृत

उपयोग अंतरमें जाय वहाँ समस्त नयपक्ष छूट जाते हैं; आत्मा जैसा है वैसा अनुभवमें आता है । जिस प्रकार गुफामें जाना हो तो वाहन प्रवेशद्वार तक आता है, फि र अपने अकेलेको अन्दर जाना पड़ता है, उसी प्रकार चैतन्यकी गुफामें जीव स्वयं अकेला अन्दर जाता है, भेदवाद सब छूट जाते हैं । पहिचाननेके लिये यह सब आता है कि ‘चेतन कैसा है’, ‘यह ज्ञान है’, ‘यह दर्शन है’, ‘यह विभाव है’, ‘यह कर्म है’, ‘यह नय है’, परन्तु जहाँ अन्दर प्रवेश करे वहाँ सब छूट जाते हैं । एक-एक विकल्प छोड़ने जाय तो कुछ नहीं छूटता, अन्दर जाने पर सब छूट जाता है ।।१८०।।

निर्विकल्प दशामें ‘यह ध्यान है, यह ध्येय है’ ऐसे विकल्प टूट चुकते हैं । यद्यपि ज्ञानीको सविकल्प दशामें भी द्रष्टि तो परमात्मतत्त्व पर ही होती है, तथापि पंच परमेष्ठी, ध्याता-ध्यान-ध्येय इत्यादि सम्बन्धी विकल्प भी होते हैं; परन्तु निर्विकल्प स्वानुभूति होने पर विकल्पजाल टूट जाता है, शुभाशुभ विकल्प नहीं रहते । उग्र निर्विकल्प दशामें