Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 182-184.

< Previous Page   Next Page >


Page 65 of 212
PDF/HTML Page 80 of 227

 

background image
ही मुक्ति क्ति है । है ।ऐसा मार्ग है ।।१८१।।
‘विकल्प छोड़ दूँ’, ‘विकल्प छोड़ दूँ’ऐसा
करनेसे विकल्प नहीं छूटते । मैं यह ज्ञायक हूँ, अनंत
विभूतिसे भरपूर तत्त्व हूँइस प्रकार अंतरसे भेदज्ञान
करे तो उसके बलसे निर्विकल्पता हो, विकल्प छूट
जायँ ।।१८२।।
चैतन्यदेव रमणीय है, उसे पहिचान । बाहर
रमणीयता नहीं है । शाश्वत आत्मा रमणीय है, उसे
ग्रहण कर । क्रियाकाण्डके आडंबर, विविध
विकल्परूप कोलाहल, उस परसे द्रष्टि हटा ले; आत्मा
आडंबर रहित, निर्विकल्प है, वहाँ द्रष्टि लगा;
चैतन्यरमणता रहित विकल्पोंके कोलाहलमें तुझे
थकान लगेगी, विश्राम नहीं मिलेगा; तेरा विश्रामगृह
आत्मा है; उसमें जा तो तुझे थकान नहीं लगेगी,
शान्ति प्राप्त होगी ।।१८३।।
चैतन्यकी ओर झुकनेका प्रयत्न होने पर उसमें
बहिनश्रीके वचनामृत
[ ६५
ब. व. ५