Benshreeke Vachanamrut (Hindi).

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बहिनश्रीके वचनामृत

विभाव और ज्ञायक हैं तो भिन्न-भिन्न ही;जैसे पाषाण और सोना एकमेक दिखने पर भी भिन्न ही हैं तदनुसार ।

प्रश्न :सोना तो चमकता है इसलिये पत्थर और सोनादोनों भिन्न ज्ञात होते हैं, परन्तु यह कैसे भिन्न ज्ञात हों ?

उत्तर :यह ज्ञान भी चमकता ही है न ? विभावभाव नहीं चमकते किन्तु सर्वत्र ज्ञान ही चमकता हैज्ञात होता है । ज्ञानकी चमक चारों ओर फै ल रही है । ज्ञानकी चमक बिना सोनेकी चमक काहेमें ज्ञात होगी ?

जैसे सच्चे मोती और खोटे मोती इकट्ठे हों तो मोतीका पारखी उसमेंसे सच्चे मोतियोंको अलग कर लेता है, उसी प्रकार आत्माको ‘प्रज्ञासे ग्रहण करना’ । जो जाननेवाला है सो मैं, जो देखनेवाला है सो मैंइस प्रकार उपयोग सूक्ष्म करके आत्माको और विभावको पृथक् किया जा सकता है । यह पृथक् करनेका कार्य प्रज्ञासे ही होता है । व्रत, तप या त्यागादि भले हों, परन्तु वे साधन नहीं होते, साधन तो प्रज्ञा ही है ।