बहिनश्रीके वचनामृत
बाकी है ऐसी ही भावना रहती है और तभी पुरुषार्थ अखण्ड रह पाता है ।
गृहस्थाश्रममें सम्यक्त्वीने मूलको पकड़ लिया है, (द्रष्टि-अपेक्षासे) सब कुछ कर लिया है, अस्थिरतारूप शाखाऐं-पत्ते जरूर सूख जायँगे । द्रव्यलिंगी साधुने मूलको ही नहीं पकड़ा है; उसने कुछ किया ही नहीं । बाह्यद्रष्टि लोगोंको ऐसा भले ही लगे कि ‘सम्यक्त्वीको अभी बहुत बाकी है और द्रव्यलिंगी मुनिने बहुत कर लिया’; परन्तु ऐसा नहीं है । परिषह सहन करे किन्तु अंतरमें कर्तृत्वबुद्धि नहीं टूटी, आकुलताका वेदन होता है, उसने कुछ किया ही नहीं ।।१९९।।
शुद्धनयकी अनुभूति अर्थात् शुद्धनयके विषयभूत अबद्धस्पृष्टादिरूप शुद्ध आत्माकी अनुभूति सो सम्पूर्ण जिनशासनकी अनुभूति है । चौदह ब्रह्माण्डके भाव उसमें आ गये । मोक्षमार्ग, केवलज्ञान, मोक्ष इत्यादि सब जान लिया । ‘सर्वगुणांश सो सम्यक्त्व’ — अनंत गुणोंका अंश प्रगट हुआ; समस्त लोका-