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लोकका स्वरूप ज्ञात हो गया ।
जिस मार्गसे यह सम्यक्त्व हुआ उसी मार्गसे मुनिपना और केवलज्ञान होगा — ऐसा ज्ञात हो गया । पूर्णताके लक्षसे प्रारंभ हुआ; इसी मार्गसे देशविरतिपना, मुनिपना, पूर्ण चारित्र एवं केवल- ज्ञान — सब प्रगट होगा ।
नमूना देखनेसे पूरे मालका पता चल जाता है । दूजके चन्द्रकी कला द्वारा पूरे चन्द्रका ख्याल आ जाता है । गुड़की एक डलीमें पूरी गुड़की पारीका पता लग जाता है । वहाँ (द्रष्टान्तमें) तो भिन्न-भिन्न द्रव्य हैं और यह तो एक ही द्रव्य है । इसलिये सम्यक्त्वमें चौदह ब्रह्माण्डके भाव आ गये । इसी मार्गसे केवलज्ञान होगा । जिस प्रकार अंश प्रगट हुआ उसी प्रकार पूर्णता प्रगट होगी । इसलिये शुद्धनयकी अनुभूति अर्थात् शुद्ध आत्माकी अनुभूति वह सम्पूर्ण जिनशासनकी अनुभूति है ।।२००।।
अपरिणामी निज आत्माका आश्रय लेनेको कहा जाता है वहाँ अपरिणामी मानें पूर्ण ज्ञायक; शास्त्रमें