Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 204-205.

< Previous Page   Next Page >


Page 79 of 212
PDF/HTML Page 94 of 227

 

बहिनश्रीके वचनामृत

[ ७९

परन्तु वह खण्डखण्डरूप है, क्षायोपशमिक ज्ञान है और द्रव्य तो अखण्ड एवं पूर्ण है, इसलिये भावेन्द्रियके लक्षसे भी वह पकड़में नहीं आता । इन सबसे उस पार द्रव्य है । उसे सूक्ष्म उपयोग करके पकड़ ।।२०३।।

आत्मा तो अनंत शक्ति योंका पिण्ड है । आत्मामें द्रष्टि स्थापित करने पर अंतरसे ही बहुत विभूति प्रगट होती है । उपयोगको सूक्ष्म करके अंतरमें जानेसे बहुत-सी स्वभावभूत ऋद्धि-सिद्धियाँ प्रगट होती हैं । अंतरमें तो आनन्दका सागर है । ज्ञानसागर, सुख- सागरयह सब भीतर आत्मामें ही हैं । जैसे सागरमें चाहे जितनी जोरदार लहरें उठती रहें तथापि उसमें न्यूनता-अधिकता नहीं होती, उसी प्रकार अनंत-अनंत काल तक केवलज्ञान बहता रहे तब भी द्रव्य तो ज्योंका त्यों ही रहता है ।।२०४।।

चैतन्यकी अगाधता, अपूर्वता और अनंतता बतलानेवाले गुरुके वचनों द्वारा शुद्धात्मदेवको बराबर