बहिनश्रीके वचनामृत
परन्तु वह खण्डखण्डरूप है, क्षायोपशमिक ज्ञान है और द्रव्य तो अखण्ड एवं पूर्ण है, इसलिये भावेन्द्रियके लक्षसे भी वह पकड़में नहीं आता । इन सबसे उस पार द्रव्य है । उसे सूक्ष्म उपयोग करके पकड़ ।।२०३।।
आत्मा तो अनंत शक्ति योंका पिण्ड है । आत्मामें द्रष्टि स्थापित करने पर अंतरसे ही बहुत विभूति प्रगट होती है । उपयोगको सूक्ष्म करके अंतरमें जानेसे बहुत-सी स्वभावभूत ऋद्धि-सिद्धियाँ प्रगट होती हैं । अंतरमें तो आनन्दका सागर है । ज्ञानसागर, सुख- सागर — यह सब भीतर आत्मामें ही हैं । जैसे सागरमें चाहे जितनी जोरदार लहरें उठती रहें तथापि उसमें न्यूनता-अधिकता नहीं होती, उसी प्रकार अनंत-अनंत काल तक केवलज्ञान बहता रहे तब भी द्रव्य तो ज्योंका त्यों ही रहता है ।।२०४।।
चैतन्यकी अगाधता, अपूर्वता और अनंतता बतलानेवाले गुरुके वचनों द्वारा शुद्धात्मदेवको बराबर