बहिनश्रीके वचनामृत
अनंत कालका अनजाना मार्ग गुरुवाणी एवं आगमके बिना ज्ञात नहीं होता । सच्चा निर्णय तो स्वयं ही करना है परन्तु वह गुरुवाणी एवं आगमके अवलम्बनसे होता है । सच्चे निर्णयके बिना — सच्चे ज्ञानके बिना — सच्चा ध्यान नहीं हो सकता । इसलिये तू श्रुतके अवलम्बनको, श्रुतके चिंतवनको साथ ही रखना ।
श्रवणयोग हो तो तत्कालबोधक गुरुवाणीमें और स्वाध्याययोग हो तो नित्यबोधक ऐसे आगममें प्रवर्तन रखना । इनके अतिरिक्त कालमें भी गुरुवाणी एवं आगम द्वारा बतलाये गये भगवान आत्माके विचार और मंथन रखना ।।२१०।।
वस्तुके स्वरूपको सब पहलुओंसे ज्ञानमें जानकर अभेदज्ञान प्रगट कर । अंतरमें समाये सो समाये; अनन्त-अनन्त काल तक अनन्त-अनन्त समाधिसुखमें लीन हुए । ‘रे ज्ञानगुणसे रहित बहुजन पद नहीं यह पा सके’ । इसलिये तू उस ज्ञानपदको प्राप्त कर । उस अपूर्व पदकी खबर बिना कल्पित ध्यान करे,