Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 211.

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अनंत कालका अनजाना मार्ग गुरुवाणी एवं
आगमके बिना ज्ञात नहीं होता । सच्चा निर्णय तो
स्वयं ही करना है परन्तु वह गुरुवाणी एवं आगमके
अवलम्बनसे होता है । सच्चे निर्णयके बिनासच्चे
ज्ञानके बिनासच्चा ध्यान नहीं हो सकता ।
इसलिये तू श्रुतके अवलम्बनको, श्रुतके चिंतवनको
साथ ही रखना ।
श्रवणयोग हो तो तत्कालबोधक गुरुवाणीमें और
स्वाध्याययोग हो तो नित्यबोधक ऐसे आगममें
प्रवर्तन रखना । इनके अतिरिक्त कालमें भी
गुरुवाणी एवं आगम द्वारा बतलाये गये भगवान
आत्माके विचार और मंथन रखना ।।२१०।।
वस्तुके स्वरूपको सब पहलुओंसे ज्ञानमें जानकर
अभेदज्ञान प्रगट कर । अंतरमें समाये सो समाये;
अनन्त-अनन्त काल तक अनन्त-अनन्त समाधिसुखमें
लीन हुए । ‘रे ज्ञानगुणसे रहित बहुजन पद नहीं यह
पा सके’ । इसलिये तू उस ज्ञानपदको प्राप्त कर ।
उस अपूर्व पदकी खबर बिना कल्पित ध्यान करे,
बहिनश्रीके वचनामृत
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