गुरुदेवनुं द्रव्य तो अलौकिक छे. तेमनुं श्रुतज्ञान अने वाणी आश्चर्यकारी छे.
परम-उपकारी गुरुदेवनुं द्रव्य मंगळ छे, तेमनी अमृतमय वाणी मंगळ छे. तेओश्री मंगळमूर्ति छे, भवोदधितारणहार छे, महिमावंत गुणोथी भरेला छे.
पूज्य गुरुदेवनां चरणकमळनी भक्ति अने तेमनुं दासत्व निरंतर हो. २६९.
पोतानी जिज्ञासा ज मार्ग करे छे. शास्त्रो साधन छे, पण मार्ग तो पोताथी ज जणाय छे. पोतानी ऊंडी तीव्र रुचि अने सूक्ष्म उपयोगथी मार्ग जणाय छे. कारण आपवुं जोईए. २७०.
जेनो जेने तन्मयपणे रस होय तेने ते भूले नहीं. ‘आ शरीर ते हुं’ ते भूलतो नथी. ऊंघमां पण शरीरना नामथी बोलावे तो जवाब आपे छे, कारण के शरीर साथे तन्मयपणानी मान्यतानो अनादि अभ्यास छे. अनभ्यस्त ज्ञायकनी अंदर जवा माटे सूक्ष्म थवुं पडे छे, धीरा थवुं पडे छे, टकवुं पडे छे; ते आकरुं लागे छे. बहारनां कार्योनो अभ्यास छे एटले सहेलां लागे छे.