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द्रव्य तो अनंत शक्तिनो धणी छे, महान छे, प्रभु छे. तेनी पासे साधकनी पर्याय पोतानी पामरता स्वीकारे छे. साधकने द्रव्य-पर्यायमां प्रभुता अने पामरतानो आवो विवेक वर्ते छे. २८३.
साधकदशा तो अधूरी छे. साधकने ज्यां सुधी पूर्ण वीतरागता न थाय, अने चैतन्य आनंदधाममां पूर्णपणे सदाने माटे बिराजमान न थाय, त्यां सुधी पुरुषार्थनो दोर तो उग्र ज थतो जाय छे. केवळज्ञान थतां एक समयनो उपयोग थाय छे अने ते एक समयनी ज्ञानपर्याय त्रण काळ अने त्रण लोकने पहोंची वळे छे. २८४.
पोते परथी ने विभावथी जुदापणानो विचार करवो. एकताबुद्धि तोडवी ते मुख्य छे. एकत्व तोडवानो क्षणे क्षणे अभ्यास करवो. २८५.
आ तो अनादिनो प्रवाह बदलवानो छे. अघरुं काम तो छे, पण जाते ज करवानुं छे. बहारनी हूंफ शा कामनी? हूंफ तो पोताना आत्मतत्त्वनी लेवानी छे. २८६.