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थयो तेटली शान्ति अने स्वरूपानंद छे. २९५.
द्रव्य तो सूक्ष्म छे, तेने पकडवा सूक्ष्म उपयोग कर. पाताळकूवानी जेम द्रव्यमां ऊंडो ऊतरी जा तो अंदरथी विभूति प्रगटे. द्रव्य आश्चर्यकारी छे. २९६.
तारुं कार्य तो तत्त्वानुसारी परिणमन करवुं ते छे. जडनां कार्यो तारां नथी. चेतननां कार्यो चेतन होय. वैभाविक कार्यो पण परमार्थे तारां नथी. जीवनमां एवुं ज घुंटाई जवुं जोईए के जड अने विभाव ते पर छे, ते हुं नथी. २९७.
ज्ञानी जीव निःशंक तो एटलो होय के आखुं ब्रह्मांड फरे तोपण पोते फरे नहि; विभावना गमे तेटला उदय आवे तोपण चलित थाय नहि. बहारना प्रतिकूळ संयोगथी ज्ञायकपरिणति न फरे; श्रद्धामां फेर न पडे. पछी क्रमे चारित्र वधतुं जाय. २९८.
वस्तु स्वतःसिद्ध छे. तेनो स्वभाव तेने अनुकूळ होय, प्रतिकूळ न होय. स्वतःसिद्ध आत्मवस्तुनो दर्शन-