१२६
छे, एकलो परिभ्रमण करे छे, एकलो मुक्त थाय छे. तेने कोईनो साथ नथी. मात्र भ्रमणाथी ते बीजानी ओथ ने आश्रय माने छे. आम चौद ब्रह्मांडमां एकला भमतां जीवे एटलां मरण कर्यां छे के तेना मरणना दुःखे तेनी मातानी आंखमांथी जे आंसु वह्यां तेनाथी समुद्रो भराय. भवपरिवर्तन करतां करतां मांडमांड तने आ मनुष्यभव मळ्यो छे, आवो उत्तम जोग मळ्यो छे, तेमां आत्मानुं हित करी लेवा जेवुं छे, वीजळीना झबकारे मोती परोवी लेवा जेवुं छे. आ मनुष्यभव ने उत्तम संयोगो वीजळीना झबकारानी जेम अल्प काळमां चाल्या जशे. माटे जेम तुं एकलो ज दुःखी थई रह्यो छे, तेम एकलो ज सुखना पंथे जा, एकलो ज मुक्तिने प्राप्त करी ले. ३५७.✽
गुरुदेव मार्ग घणो ज स्पष्ट बतावी रह्या छे. आचार्यभगवंतोए मुक्तिनो मार्ग प्रकाश्यो छे अने गुरुदेव ते स्पष्ट करे छे. पेंथीए पेंथीए तेल नाखे तेम झीणवटथी चोख्खुं करीने बधुं समजावे छे. भेदज्ञाननो मार्ग हथेळीमां देखाडे छे. माल चोळीने, तैयार करीने आपे छे के ‘ले, खाई ले’. हवे खावानुं तो पोताने छे. ३५८.