मुनिराज आश्चर्यकारी निज ॠद्धिथी भरेला चैतन्य- महेलमां निवास करे छे; चैतन्यलोकमां अनंत प्रकारनुं जोवानुं छे तेनुं अवलोकन करे छे; अतीन्द्रियआनंदरूप स्वादिष्ट अमृतभोजनना थाळ भरेला छे ते भोजन जमे छे. समरसमय अचिंत्य दशा छे! ३६३.
गुरुदेवे शास्त्रोनां गहन रहस्यो उकेलीने सत्य शोधी काढ्युं ने आपणी पासे स्पष्ट रीते मूक्युं छे. आपणे क्यांय सत्य गोतवा जवुं पड्युं नथी. गुरुदेवनो प्रताप कोई अद्भुत छे. ‘आत्मा’ शब्द बोलतां शीख्यां होईए तो ते पण गुरुदेवना प्रतापे. ‘चैतन्य छुं’, ‘ज्ञायक छुं’ — इत्यादि इत्यादि बधुं गुरुदेवना प्रतापे ज जणायुं छे. भेदज्ञाननी वात सांभळवी दुर्लभ हती तेने बदले तेओश्रीनी सातिशय वाणी द्वारा ते वातना हंमेशां धोध वरसे छे. गुरुदेव जाणे के हाथ झालीने शीखवी रह्या छे. पोते पुरुषार्थ करी शीखी लेवा जेवुं छे. अवसर चूकवायोग्य नथी. ३६४.
काळ अनादि छे, जीव अनादि छे, जीवे बे प्राप्त कर्यां नथी — जिनराजस्वामी अने सम्यक्त्व. जिनराज- स्वामी मळ्या पण ओळख्या नहि, तेथी मळ्या ते न