संसारमां देव-गुरु-धर्मनुं ज शरण छे. पूज्य गुरुदेवे बतावेला चैतन्यशरणने लक्षगत करीने तेना द्रढ संस्कार आत्मामां पडी जाय — ए ज जीवनमां करवा जेवुं छे. ५.
स्वभावनी वात सांभळतां सोंसरवट काळजे घा पडी जाय. ‘स्वभाव’ शब्द सांभळतां शरीरनी सोंसरवट काळजामां ऊतरी जाय, रुवांटे रुवांटां खडां थई जाय एटलुं हृदयमां थाय, अने स्वभाव प्राप्त कर्या विना चेन न पडे, सुख न लागे, लीधे ज छूटको. यथार्थ भूमिकामां आवुं होय छे. ६.
जगतमां जेम कहे छे के डगले ने पगले पैसानी जरूर पडे छे, तेम आत्मामां डगले ने पगले एटले के पर्याये पर्याये पुरुषार्थ ज जोईए छे. पुरुषार्थ वगर एक पण पर्याय प्रगटती नथी. एटले रुचिथी मांडी ठेठ केवळज्ञान सुधी पुरुषार्थ ज जोईए छे. ७.
अत्यारे पूज्य गुरुदेवनी वातने ग्रहण करवा घणा जीवो तैयार थई गया छे. गुरुदेवने वाणीनो योग प्रबळ छे, श्रुतनी धारा एवी छे के लोकोने असर करे ने