द्रष्टि द्रव्य उपर राखवानी छे. विकल्पो आवे पण द्रष्टि एक द्रव्य उपर छे. जेम पतंग आकाशमां ऊडे पण दोर हाथमां होय छे, तेम ‘चैतन्य छुं’ ए दोर हाथमां राखवो. विकल्पो आवे, पण चैतन्यतत्त्व ते हुं छुं — एवो वारंवार अभ्यास करवाथी द्रढता थाय. १८.
ज्ञानीने अभिप्रायमां राग छे ते झेर छे, काळो सर्प छे. हजु आसक्तिने लईने ज्ञानी बहार थोडा ऊभा छे, राग छे, पण अभिप्रायमां काळो सर्प लागे छे. ज्ञानीओ विभावनी वच्चे ऊभा होवा छतां विभावथी जुदा छे, न्यारा छे. १९.
मारे कांई जोईतुं ज नथी, कोई पर पदार्थनी लालसा नथी, आत्मा ज जोईए — एवी जेने तीखी तमन्ना लागे तेने मार्ग मळ्ये ज छूटको छे. अंदरमां चैतन्यॠद्धि छे ते ॠद्धि संबंधी विकल्पमां पण ते रोकातो नथी. एवो निस्पृह थई जाय छे के मारे मारुं अस्तित्व ज जोईए छे. — आवी अंदर जवानी तीखी तमन्ना लागे, तो आत्मा प्रगट थाय, प्राप्त थाय. २०.