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ज लीला, स्वरूपमां ज विचरण करे छे. संपूर्ण श्रामण्य प्रगटावी तेओ लीलामात्रमां श्रेणी मांडी केवळज्ञान प्रगटावे छे. ७८.
शुद्धस्वरूप आत्मामां जाणे विकार अंदर पेसी (प्रवेशी) केम गया होय तेवुं देखाय छे, पण भेदज्ञान प्रगट करतां तेओ ज्ञानरूपी चैतन्य-अरीसामां प्रतिबिंबरूप छे. ज्ञान-वैराग्यनी अचिंत्य शक्तिथी पुरुषार्थनी धारा प्रगट कर. यथार्थ द्रष्टि (द्रव्य उपर द्रष्टि) करी उपर आवी जा. चैतन्यद्रव्य निर्मळ छे. अनेक जातनां कर्मनां उदय, सत्ता, अनुभाग तथा कर्मनिमित्तक विकल्प वगेरे ताराथी अत्यंत जुदां छे. ७९.
विधि अने निषेधनी विकल्पजाळने छोड. हुं बंधायेलो छुं, हुं बंधायेल नथी — ते बधुं छोडी अंदर जा, अंदर जा; निर्विकल्प था, निर्विकल्प था. ८०.
जेम स्वभावे निर्मळ एवा स्फटिकमां लाल-काळा फूलना संयोगे रंग देखाय तोपण खरेखर स्फटिक रंगाई गयो नथी, तेम स्वभावे निर्मळ एवा आत्मामां क्रोध –