Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 103-107.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
३५

चैतन्यमां संपूर्णपणे जो अत्यारे ज ठरी जवातुं होय तो बीजुं कांई जोईतुं नथी एवी सम्यग्द्रष्टिनी भावना होय छे. १०३.

हुं शुद्ध छुं’ एम स्वीकारतां पर्यायनी रचना शुद्ध ज थाय छे. जेवी द्रष्टि तेवी सृष्टि. १०४.

आत्माए तो त्रिकाळ एक ज्ञायकपणानो ज वेष परमार्थे धारण करेलो छे. ज्ञायक तत्त्वने परमार्थे कोई पर्यायवेष नथी, कोई पर्याय-अपेक्षा नथी. आत्मा ‘मुनि छे’ के ‘केवळज्ञानी छे’ के ‘सिद्ध छे’ एवी एक पण पर्याय-अपेक्षा खरेखर ज्ञायक पदार्थने नथी. ज्ञायक तो ज्ञायक ज छे. १०५.

चैतन्यस्वरूप आत्मा तारो पोतानो छे माटे तेने प्राप्त करवो सुगम छे. परपदार्थ परनो छे, पोतानो थतो नथी, पोतानो करवामां मात्र आकुळता थाय छे. १०६.

शाश्वत शुद्धिधाम एवुं जे बळवान आत्मद्रव्य तेनी द्रष्टि प्रगट थई तो शुद्ध पर्याय प्रगटे ज. विकल्पना