६०
कर, पछी भले बधुं ज्ञान थाय. एम करतां करतां अंदर विशेष लीनता थाय, साधक दशा वधती जाय. देशव्रत अने महाव्रत सामान्य स्वरूपना आलंबने आवे छे; मुख्यता निरंतर सामान्य स्वरूपनी — द्रव्यनी होय छे. १९१.
आत्मा तो निवृत्तस्वरूप — शान्तस्वरूप छे. मुनिराजने तेमांथी बहार आववुं प्रवृत्तिरूप लागे छे. ऊंचामां ऊंचा शुभभाव पण तेमने बोजारूप लागे छे, जाणे के पर्वत उपाडवानो होय. शाश्वत आत्मानी ज उग्र धून लागी छे. आत्माना प्रचुर स्वसंवेदनमांथी बहार आववुं गमतुं नथी. १९२.
सम्यग्द्रष्टि जीव ज्ञायकने ज्ञायक वडे ज पोतामां धारी राखे छे, टकावी राखे छे, स्थिर राखे छे — एवी सहज दशा होय छे.
सम्यग्द्रष्टि जीवने तेम ज मुनिने भेदज्ञाननी परिणति तो चालु ज होय छे. सम्यग्द्रष्टि गृहस्थने तेनी दशाना प्रमाणमां उपयोग अंतरमां जाय छे तेम ज बहार आवे छे; मुनिराजने तो उपयोग बहु झडपथी वारंवार अंदर ऊतरी जाय छे. भेदज्ञाननी परिणति —