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दुष्करता शी? ते तो सुगम ज होय ने? १९६.
प्रज्ञाछीणी शुभाशुभ भाव अने ज्ञाननी सूक्ष्म अंतःसंधिमां पटकवी. उपयोगने बराबर सूक्ष्म करी ते बंनेनी संधिमां सावधान थईने तेनो प्रहार करवो. सावधान थईने एटले बराबर सूक्ष्म उपयोग करीने, बराबर लक्षण वडे ओळखीने.
अबरखनां पड केवां पातळां होय छे, त्यां बराबर सावधानीथी एने जुदां पाडे, तेम सूक्ष्म उपयोग करी स्वभाव-विभाव वच्चे प्रज्ञाथी भेद पाड. जे क्षणे विभावभाव वर्ते छे ते ज समये ज्ञाताधारा वडे स्वभावने जुदो जाणी ले. जुदो ज छे पण तने भासतो नथी. विभाव ने ज्ञायक छे तो जुदेजुदा ज; — जेम पाषाण ने सोनुं भेगां देखाय पण जुदां ज छे तेम.
प्रश्नः — सोनुं तो चळके छे एटले पथ्थर ने ते — बंने जुदां जणाय छे, पण आ कई रीते जुदा जणाय?
उत्तरः — आ ज्ञान पण चळके ज छे ने? विभावभाव चळकता नथी पण बधे ज्ञान ज चळके छे — जणाय छे. ज्ञाननो चळकाट चारे तरफ प्रसरी रह्यो छे. ज्ञानना चळकाट विना सोनानो चळकाट शेमां जणाय?