जेम साचां मोती ने खोटां मोती भेगा होय तो मोतीनो पारखु एमांथी साचां मोतीने जुदां पाडी ले छे, तेम आत्माने ‘प्रज्ञाथी ग्रहवो’, जे जाणनारो छे ते हुं, जे देखनारो छे ते हुं — एम उपयोग सूक्ष्म करीने आत्माने अने विभावने जुदा पाडी शकाय छे. आ जुदा पाडवानुं कार्य प्रज्ञाथी ज थाय छे. व्रत, तप के त्यागादि भले हो, पण ते साधन न थाय, साधन तो प्रज्ञा ज छे.
स्वभावना महिमाथी परपदार्थ प्रत्ये रसबुद्धि — सुखबुद्धि तूटी जाय छे. स्वभावमां ज रस लागे, बीजुं नीरस लागे. त्यारे ज अंतरनी सूक्ष्म संधि जणाय. एम न होय के परमां तीव्र रुचि होय ने उपयोग अंतरमां प्रज्ञाछीणीनुं कार्य करे. १९७.
ज्ञातापणाना अभ्यासथी ज्ञातापणुं प्रगट थतां कर्तापणुं छूटे छे. विभाव पोतानो स्वभाव नथी तेथी आत्मद्रव्य कांई पोते ऊछळीने विभावमां एकमेक थई जतुं नथी, द्रव्य तो शुद्ध रहे छे; मात्र अनादि काळनी मान्यताने लीधे ‘पर एवा जड पदार्थने हुं करुं छुं, रागादि मारुं स्वरूप छे, हुं विभावनो खरेखर कर्ता छुं’ वगेरे भ्रमणा थई रही छे. यथार्थ ज्ञाताधारा