Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 199.

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बहेनश्रीनां वचनामृत

प्रगट थाय तो कर्तापणुं छूटे छे. १९८.

जीवने अटकवाना जे अनेक प्रकार छे ते बधामांथी पाछो वळ अने मात्र चैतन्यदरबारमां ज उपयोगने लगाडी दे; चोक्कस प्राप्ति थशे ज. अनंत अनंत काळथी अनंत जीवोए आवी ज रीते पुरुषार्थ कर्यो छे, माटे तुं पण आम कर.

अनंत अनंत काळ गयो, जीव क्यांक क्यांक अटके ज छे ने? अटकवाना तो अनेक अनेक प्रकार; सफळ थवानो एक ज प्रकारचैतन्यदरबारमां जवुं ते. पोते क्यां अटके छे ते जो पोते ख्याल करे तो बराबर जाणी शके.

द्रव्यलिंगी साधु थईने पण जीव क्यांक सूक्ष्मपणे अटकी जाय छे, शुभ भावनी मीठाशमां रोकाई जाय छे, ‘आ रागनी मंदता, आ अठ्यावीस मूळगुण, बस आ ज हुं, आ ज मोक्षनो मार्ग’, इत्यादि कोई प्रकारे संतोषाई अटकी जाय छे; पण आ अंदरमां विकल्पो साथे एकताबुद्धि तो पडी ज छे तेने कां जोतो नथी? आ अंतरमां शान्ति केम देखाती नथी? पापभाव त्यागी ‘सर्वस्व कर्युं’ मानी संतोषाई जाय छे. साचा आत्मार्थीने अने सम्यग्द्रष्टिने तो ‘घणुं