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चारित्र ने केवळज्ञान — बधुं प्रगट थशे.
नमूनामां पूरा मालनो ख्याल आवे. चंद्रनी बीजनी कळामां आखो चंद्रमा ख्यालमां आवे. गोळनी एक कणीमां आखा रवानो ख्याल आवे. त्यां (द्रष्टांतमां) तो जुदां जुदां द्रव्य ने आ तो एक ज द्रव्य. माटे समकितमां चौद ब्रह्मांडना भावो आवी गया. ए ज मार्गे केवळ. जेम अंश प्रगट्यो तेम ज पूर्णता प्रगटशे. माटे शुद्धनयनी अनुभूति एटले के शुद्ध आत्मानी अनुभूति ते संपूर्ण जिनशासननी अनुभूति छे. २००.
अपरिणामी निज आत्मानो आश्रय लेवानुं कहेवामां आवे छे त्यां अपरिणामी एटले आखो ज्ञायक; शास्त्रमां निश्चयनयना विषयभूत जे अखंड ज्ञायक कह्यो छे ते ज आ ‘अपरिणामी’ निजात्मा.
प्रमाण-अपेक्षाए आत्मद्रव्य मात्र अपरिणामी ज नथी, अपरिणामी तेम ज परिणामी छे. पण अपरिणामी तत्त्व पर द्रष्टि देतां परिणाम गौण थई जाय छे; परिणाम क्यांय चाल्या जता नथी. परिणाम क्यां जता रहे? परिणमन तो पर्यायस्वभावने लीधे थया ज करे छे, सिद्धमां पण परिणति तो होय छे.